महर्षि दुर्वासा एक प्राचीन हिंदू ऋषि थे, जो अपनी तीव्र क्रोध के लिए प्रसिद्ध हैं। वे महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र थे और महायोगी दत्तात्रेय और चंद्रदेव के भाई थे। दुर्वासा को भगवान शिव का अंश अवतार माना जाता है, और वे जहां भी जाते थे, लोग उनका देवता की तरह आदर करते थे।
दुर्वासा ऋषि का पौराणिक कथाओं में कई महत्वपूर्ण घटनाओं में उल्लेख मिलता है। वे रामायण और महाभारत काल में भी सक्रिय थे। महाभारत के अनुसार, उन्होंने कुंती को एक मंत्र दिया था जिससे वह किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थीं, और इसी मंत्र के फलस्वरूप कुंती को कर्ण की प्राप्ति हुई थी।
प्रयागराज से संबंध
दुर्वासा ऋषि का प्रयागराज से विशेष संबंध का कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन यह माना जाता है कि उन्होंने विभिन्न स्थानों पर आश्रम स्थापित किए थे और अपने समय में कई तीर्थ स्थलों पर भ्रमण किया। उनकी उपस्थिति और उनके द्वारा किए गए यज्ञ और तपस्या का प्रभाव विभिन्न धार्मिक स्थलों पर देखा जाता है।
प्रयागराज, जो पवित्र नदियों के संगम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, हमेशा से ऋषियों और मुनियों के लिए एक उपयुक्त स्थान रहा है। यह संभव है कि दुर्वासा ऋषि ने भी इस पवित्र स्थल पर कुछ समय बिताया हो, लेकिन इसके लिए कोई विशेष पौराणिक कथा या प्रमाण उपलब्ध नहीं है।