
श्रृंगवेरपुर की पौराणिक कथा क्या है?
श्रृंगवेरपुर के बारे में सबसे पहले रामायण से पता चलता है कि इस स्थान पर कश्यप ऋषि का आश्रम हुआ करता था। जिनके पुत्र थे विभंडक ऋषि। जिनके यहाँ श्रृंगी ऋषि का जन्म हुआ। इन्हीं के नाम पर इस स्थान को आज श्रृंगवेरपुर के नाम से जाना जाता है।

श्रृंगी ऋषि और श्री राम का क्या रिश्ता है?
श्रृंगी ऋषि का विवाह हुआ था अंगदेश के राजा रोम पाद की गोदी ली हुई पुत्री शांता से। जिनके मूल माता-पिता थे राजा दशरथ और कौशल्या अर्थात श्रृंगी ऋषि राजा दशरथ के दामाद थे। कथानुसार श्रृंगी ऋषि के यज्ञ अनुष्ठान करने के बाद राजा दशरथ के यहां श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म होता है। हालांकि महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखे गए मूल रामायण में श्रृंगी ऋषि और शांता के संबंधों का कोई भी वर्णन नहीं किया गया। किंतु दक्षिण भारत के रामायण में राम की सगी बहन शांता को लेकर नई कथा का विस्तार मिलता है।

श्रृंगवेरपुर का रामायण से क्या सम्बंध है?
महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखे गए संस्कृत के मूल रामायण के अनुसार यहाँ एक ऐसा आदिवासी गांव था जो गंगा नदी में नाव चला कर अपना जीवन यापन करते थे। रामायण में इन लोगों को निषाद के नाम से पुकारा गया है। इस गाँव के मुखिया थे निषाद राज केवट। वनवास काल में श्रीराम ने गंगा को पार करने के लिए यहीं पर एक रात विश्राम किया था और एक शिवलिंग की स्थापना की थी। अपनी नाव से श्री राम को गंगा के उस पार ले जाने से पहले केवट ने गंगा नदी के पानी से श्री राम के चरणों को धुलने का आग्रह किया था। उस जल को पीने के बाद केवट ने श्रीराम को गंगा नदी पार कराके प्रयाग के जंगलों तक छोड़ा था।

श्रृंगवेरपुर की सभ्यता के बारे में कैसे पता चला?
इस स्थान के बारे में तब पता चला जब पुरातत्व विभाग द्वारा इंदिरा गांधी के कार्यकाल यानि 1977 में यहां पर खुदाई का काम शुरू किया गया। लगातार 4 सालों तक हुई खुदाई को 1981 में बंद कर दिया गया।

श्रृंगवेरपुर में हुई खुदाई से क्या मिला था?
इस खुदाई में कई मिट्टी के बर्तनों के अवशेष मिले इसके साथ ही ईटों से बनी हुई दीवाल की संरचनाएं मिली। गहराई से विश्लेषण करने के बाद यह बात सामने आई कि ईटों से बनाई गई यह संरचना एक प्रकार की नहर थी जो गंगा नदी से हाइड्रोलिक तकनीक के द्वारा पानी को नहर तक उठाती थी जिसके बाद नहर का पानी एक गोलाकार टैंक में इकट्ठा किया जाता था जहां पर उसे साफ करके आगे तालाब में इकट्ठा करके इस्तेमाल किया जाता था। इस्तेमाल के बाद जो भी पानी दूषित होता था उसे वापस गंगा नदी की और भेज दिया जाता था।

श्रृंगवेरपुर से मिले अवशेष कितने साल पुराने हैं?
आज से 3000 साल पहले यानी 1000 ईसा पूर्व से लेकर शुंग, कुषाण और गुप्त काल में प्रयोग होने वाले मिट्टी के बर्तन और मूर्तियों के अवशेष यहाँ पाए गए थे। पहली सदी ईसा पूर्व के आसपास लगभग 300 सालों तक इस स्थान पर सभ्यता अपने चरम पर विकसित हो चुकी थी।

श्रृंगवेरपुर से जुड़ा रहस्य क्या है?
श्रृंगवेरपुर में रहने वाली सभ्यता का धीरे-धीरे पतन होने लगा लेकिन पतन का मूल कारण क्या था यह आज भी पूरी तरह से एक रहस्य है। इसे लेकर बस अनुमान लगाए गए हैं कि शायद गंगा नदी के बाढ़ की वजह से यह सभ्यता पूरी तरह से तबाह हो गई या फिर किसी राजा के आक्रमण विशेष रूप से तुर्कों के आक्रमण की वजह से यह सभ्यता हमेशा के लिए विलुप्त हो गई

श्रृंगवेरपुर का आज क्या महत्व है?
आज श्रृंगवेरपुर, प्रयागराज का एक प्राचीन धार्मिक स्थल है। यहाँ श्रृंगी ऋषि का आश्रम, रामघाट, ऋषि तलैया, सीता कुंड, भैरव घाट, राम सैय्या, एक टीले पर श्रीराम द्वारा स्थापित किए गए शिवलिंग का एक मंदिर, शमशान घाट, खुदाई में पाए गए उन्नत सभ्यता के अवशेष एवं पानी को साफ करने की तकनीक की संरचना और निषादों का एक गांव आदि प्रमुख स्थल भ्रमण योग्य हैं। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यहां पर एक विशाल निषाद राज पार्क बनाया गया है जिसमें श्रीराम और केवट की गले मिलती हुई एक भव्य प्रतिमा लगाई गई है।
