राजा पुरुरवा वैदिक काल के एक महान राजा थे और उन्हें चंद्रवंश के प्रथम राजा के रूप में जाना जाता है। वे बुध और इला के पुत्र थे। पुरुरवा का उल्लेख कई पौराणिक कथाओं और ग्रंथों में मिलता है, जिनमें कालिदास के नाटक "विक्रमोर्वशीयम्" भी शामिल है। पुरुरवा अपनी वीरता और गुणों के लिए प्रसिद्ध थे, और उनके शौर्य से प्रभावित होकर स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी उनसे प्रेम कर बैठी थीं। उर्वशी ने इंद्रपुरी को छोड़कर पृथ्वी पर आकर पुरुरवा से विवाह किया था।
प्रयागराज से संबंध
पुराणों के अनुसार, राजा पुरुरवा की राजधानी प्रतिष्ठानपुर थी, जो वर्तमान में प्रयागराज के निकट स्थित है। प्रतिष्ठानपुर गंगा नदी के तट पर स्थित था और इसे पुरुरवा ने अपने शासन का केंद्र बनाया था[2][3]. यह स्थान उनके शासनकाल के दौरान एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र बन गया था। राजा पुरुरवा ने यहाँ से शासन करते हुए कई यज्ञों का आयोजन किया, जिनमें सौ अश्वमेध यज्ञ भी शामिल थे[1]. इस प्रकार, प्रयागराज का पुरुरवा के साथ एक गहरा ऐतिहासिक और पौराणिक संबंध है।