रसूलाबाद श्मशान घाट प्रयागराज

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Rasulabad shmshan ghat Prayagraj

रसूलाबाद घाट: परंपरा और बदलाव की कहानी

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद कहा जाता था, अपने पवित्र संगम और घाटों के लिए जाना जाता है। इन घाटों में से एक है रसूलाबाद घाट, जो न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां एक प्रेरणादायक कहानी भी छिपी है। इस कहानी का मुख्य किरदार हैं महराजिन बुआ, जिनका असली नाम गुलाब देवी था।

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गुलाब देवी की शुरुआत

गुलाब देवी का जन्म एक पुरोहित परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने समाज की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देने का साहस दिखाया। जब उनके पिता के काम पर दूसरों ने कब्जा कर लिया, तो गुलाब देवी ने अपने परिवार की आजीविका के लिए इक्का चलाना शुरू किया। इसके साथ ही उन्होंने पुरोहित के कार्यों को सीखना शुरू किया और धीरे-धीरे घाट पर जाकर दाह संस्कार से जुड़े कर्मकांड कराने लगीं।

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रसूलाबाद घाट की स्थापना

1948 में, महराजिन बुआ ने रसूलाबाद घाट की नींव रखी। उस समय यह जगह जंगल जैसी थी और लोग यहां मरे हुए जानवरों को प्रवाहित करते थे। महराजिन बुआ ने यहां लकड़ी की टाल खुलवाई ताकि दाह संस्कार के लिए आने वाले लोगों को कोई कठिनाई न हो। धीरे-धीरे यह जगह एक व्यवस्थित दाह संस्कार स्थल बन गई।

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परंपरा को चुनौती देना

महराजिन बुआ ने उस समय की परंपराओं को चुनौती दी, जब महिलाओं का श्मशान घाट पर जाना वर्जित था। उन्होंने न केवल दाह संस्कार से जुड़े कर्मकांड कराए बल्कि शवों को जलाने का कार्य भी किया। कई बार उन्होंने अकेले ही सभी कर्मकांड पूरे किए, जो उस समय के लिए एक क्रांतिकारी कदम था।

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चंद्रशेखर आजाद का संबंध

रसूलाबाद घाट का एक खास पहलू यह है कि यहीं पर देश के महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की अंत्येष्टि हुई थी। यह स्थान आज भी स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका की याद दिलाता है और लोग यहां आकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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महादेवी वर्मा का घर

घाट के पास हिंदी साहित्य की महान लेखिका महादेवी वर्मा का प्राचीन घर भी स्थित है। यह घर साहित्य प्रेमियों के लिए एक तीर्थ स्थल जैसा है, जहां वे महादेवी वर्मा की रचनाओं और उनके जीवन को करीब से महसूस कर सकते हैं।

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समाज सेवा और योगदान

महराजिन बुआ ने दाह संस्कार के कार्य को सामाजिक सेवा के रूप में लिया। उन्होंने सुनिश्चित किया कि घाट पर आने वाले लोगों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो। उनके योगदान को सम्मानित करते हुए रसूलाबाद घाट पर उनकी मूर्ति स्थापित की गई है और एक शेल्टर हाउस भी बनाया गया है।

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आधुनिक युग में बदलाव

आजकल प्रयागराज नगर निगम ने इस घाट को साफ-सुथरा और आकर्षक बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। यहां पर कूड़ेदान लगाए गए हैं ताकि लोग बिना किसी परेशानी के इस जगह का आनंद ले सकें। शाम होते ही यहां लोगों की भीड़ उमड़ती है, जो गंगा नदी के किनारे बैठकर शांति का अनुभव करते हैं।

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रसूलाबाद घाट न केवल प्रयागराज का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है बल्कि यह सामाजिक परिवर्तन और साहसिक नेतृत्व का प्रतीक भी है। महराजिन बुआ की कहानी हमें सिखाती है कि कैसे एक व्यक्ति अपने दृढ़ निश्चय से समाज की धारणाओं को बदल सकता है और नए रास्ते बना सकता है। उनका जीवन और कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।

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