दारागंज श्मशान घाट प्रयागराज

0
daraganj shamshan ghat prayagraj

दारागंज श्मशान घाट या दशाश्वमेध शमशान घाट का इतिहास और उससे जुड़ी कहानियाँ प्रयागराज की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह घाट गंगा नदी के किनारे स्थित है और इसका नाम मुगल शहजादा दारा शिकोह के नाम पर रखा गया है। दारा शिकोह अपनी विद्वता और धार्मिक सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध थे, और उनके नाम पर इस क्षेत्र का नामकरण किया गया था।

daraganj shamshan ghat prayagraj railway bridge

दारागंज घाट का महत्व

दारागंज श्मशान घाट न केवल अंतिम संस्कार की रस्मों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है। यहां कई पुराने मंदिर हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध वेणी माधवजी का मंदिर है। यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक केंद्र है, जहाँ बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

daraganj shamshan ghat Allahabad

अंतिम संस्कार की प्रक्रिया

अंतिम संस्कार हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह व्यक्ति के जीवन का अंतिम संस्कार होता है, जिसमें मृत्यु के बाद शरीर को अग्नि को दिया जाता है। जिससे मृत शरीर को पंचतत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—में विलीन किया जाता है। व्यक्ति की मृत्यु के बाद, उसके शरीर को श्मशान घाट लाया जाता है जहाँ दाह संस्कार होता है। 

daraganj shamshan ghat prayagraj allahabad

श्मशान से लौटने के बाद कुछ धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं जैसे स्नान करना, मंदिर में प्रार्थना करना, और मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए दीपक जलाना। ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद 12 दिन तक आत्मा घर में रहती है, इसलिए इन दिनों तक दीप जलाने की परंपरा है।

daraganj shmshan ghat prayagraj sangam

कोविड-19 महामारी का प्रभाव

कोविड-19 महामारी के दौरान श्मशान घाटों पर शवों की संख्या में भारी वृद्धि देखी गई। दारागंज विद्युत शवदाह गृह में इस दौरान लगभग 400 शवों का अंतिम संस्कार हुआ, जिसमें 20 से अधिक लावारिश शव भी शामिल थे। महामारी ने अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को प्रभावित किया और प्रशासनिक चुनौतियाँ भी उत्पन्न हुईं।

दारागंज श्मशान घाट प्रयागराज

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

हाल ही में, प्रयागराज नगर निगम ने कुछ घाटों पर शवदाह संस्कार पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे स्थानीय पंडा और लकड़ी विक्रेता प्रभावित हुए हैं। हालांकि, दारागंज विद्युत शवदाह गृह उन स्थानों में शामिल है जहाँ अभी भी शवदाह की अनुमति है। यह निर्णय पर्यावरणीय चिंताओं और गंगा नदी की स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए लिया गया है


दारागंज श्मशान घाट न केवल एक धार्मिक स्थल है बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है। यहाँ की कहानियाँ मुगल काल से लेकर आधुनिक समय तक की सामाजिक संरचना और परिवर्तन को दर्शाती हैं।


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !