
डॉ. कृत्युंजय प्रसाद सिन्हा एक प्रसिद्ध भारतीय सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी थे, जो ठोस अवस्था भौतिकी और ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में अपने शोध के लिए जाने जाते हैं। उनका जन्म 5 जुलाई 1929 को बिहार के अख्तियारपुर में हुआ था और उनका निधन 23 जनवरी 2023 को हुआ।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कृत्युंजय प्रसाद सिन्हा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार में पूरी की और 1944 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने 1946 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने 1948 में बीएससी और 1950 में एमएससी की डिग्री प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए वे सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय गए, जहाँ उन्होंने जी.आई. फिंच के मार्गदर्शन में ठोस अवस्था भौतिकी में पीएचडी की उपाधि 1956 में प्राप्त की। इसके बाद वे यूके चले गए और ब्रिस्टल विश्वविद्यालय से सैद्धांतिक भौतिकी में दूसरी पीएचडी 1965 में पूरी की।
करियर और योगदान
1959 में भारत लौटने पर, डॉ. सिन्हा ने राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला में ठोस अवस्था और आणविक भौतिकी इकाई के समूह नेता के रूप में काम किया। 1970 में वे भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) से जुड़े और वहाँ वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में तीन दशकों से अधिक समय तक सेवा की। उन्होंने ठोस अवस्था भौतिकी, क्रिस्टल चुंबकत्व, उच्च तापमान सुपरकंडक्टिविटी, और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
डॉ. सिन्हा ने कई किताबें लिखीं और उनके शोध कार्यों को व्यापक रूप से सराहा गया। उन्होंने भारत के कई संस्थानों में सैद्धांतिक अध्ययन शुरू किए और कई छात्रों का मार्गदर्शन किया।
पुरस्कार और सम्मान
डॉ. सिन्हा को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें 1974 का शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार शामिल है। उन्हें भारतीय विज्ञान अकादमी, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, और राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत का फेलो चुना गया। उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में आमंत्रित वक्ता के रूप में बुलाया गया।
प्रयागराज से संबंध
प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) से डॉ. कृत्युंजय प्रसाद सिन्हा का गहरा संबंध था क्योंकि उन्होंने यहाँ के इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपनी बीएससी और एमएससी की पढ़ाई पूरी की थी। यह विश्वविद्यालय उनके शैक्षिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा, जिसने उनके वैज्ञानिक करियर को दिशा दी और उन्हें एक सफल वैज्ञानिक बनने में मदद की। प्रयागराज ने उनके ज्ञानार्जन की नींव रखी, जो आगे चलकर उनके योगदानों का आधार बनी।