कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना

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Kamleshwar Prasad Saxena

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना, जिन्हें आमतौर पर कमलेश्वर के नाम से जाना जाता है, 20वीं सदी के एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक थे। उनका जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ था। हिंदी साहित्य में उनका योगदान उल्लेखनीय है, और वे भारतीय फिल्मों और टेलीविजन के लिए पटकथा लेखक के रूप में भी काम कर चुके हैं।


 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

कमलेश्वर का जन्म मैनपुरी जिले में हुआ, जहाँ उन्होंने अपने शुरुआती साल बिताए। उनकी पहली कहानी "कॉमरेड" 1948 में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातक और फिर मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसी दौरान उनका पहला उपन्यास *बदनाम गली* प्रकाशित हुआ, और उन्होंने इलाहाबाद में ही अपने साहित्यिक करियर की शुरुआत की।


करियर

कमलेश्वर ने अपने करियर की शुरुआत प्रूफरीडर के रूप में की और बाद में 'विहान' नामक साहित्यिक पत्रिका के संपादक बने। उन्होंने कई हिंदी पत्रिकाओं का संपादन किया, जिनमें 'नई कहानियाँ', 'सारिका', 'कथा यात्रा', और 'गंगा' शामिल हैं। इसके अलावा, वे 'दैनिक जागरण' और 'दैनिक भास्कर' जैसे हिंदी दैनिक समाचार पत्रों के संपादक भी रहे। उन्होंने नई उभरती आवाज़ों को प्रोत्साहित किया और हिंदी पाठकों के लिए नए विचारों का द्वार खोला।


फिल्म और टेलीविजन

1970 के दशक में कमलेश्वर मुंबई चले गए और हिंदी फिल्मों के लिए पटकथाएँ लिखने लगे। उन्होंने *आंधी*, *मौसम*, *छोटी सी बात*, *रंग बिरंगी*, और *द बर्निंग ट्रेन* जैसी फिल्मों के लिए काम किया। उन्हें 1979 में फिल्म *पति पत्नी और वो* के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।


टेलीविजन में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने दूरदर्शन के लिए कई धारावाहिक लिखे, जिनमें *चंद्रकांता*, *आकाश गंगा*, *युग*, और *बेताल पच्चीसी* शामिल हैं। वे दूरदर्शन के 'अतिरिक्त महानिदेशक' भी रहे।


बाद के वर्ष

कमलेश्वर को उनके उपन्यास *कितने पाकिस्तान* के लिए 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला, जो भारत विभाजन पर आधारित है। उन्हें 2005 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। उनका निधन 27 जनवरी 2007 को फरीदाबाद में दिल का दौरा पड़ने से हुआ।


प्रयागराज से संबंध

प्रयागराज (इलाहाबाद) से कमलेश्वर का गहरा संबंध था क्योंकि उन्होंने यहाँ के विश्वविद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने उनके साहित्यिक करियर की नींव रखी और उन्हें एक सफल लेखक बनने में मदद की। प्रयागराज ने उनके लेखन को दिशा दी, जो आगे चलकर उनके अद्वितीय योगदानों का आधार बना।


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