
प्रयागराज के पास जसरा विकास खंड में चिल्ला गौहानी एक खास जगह है, जो नैनी पुल से करीब 30 किलोमीटर दूर है। यहां की सबसे बड़ी खासियत 'आल्हा-ऊदल की बैठक' है, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने संरक्षित किया है। यह जगह इतिहास और रोमांच के शौकीनों के लिए एक आकर्षक स्थल है।
आल्हा और ऊदल, जो चंदेल वंश के आखिरी महान शासक परमर्दिदेव या परमल (1162 से 1203 ई.) की सेना में सेनानायक थे, इस जगह से जुड़े हैं। वे पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ लड़ाई में शहीद हो गए थे। इतिहासकारों ने इस खंडहर को आल्हा-ऊदल से जोड़कर इसे 'आल्हा-ऊदल की बैठक' का नाम दिया है। यहां बिखरे पत्थरों को देखकर लगता है कि यह जगह कभी बहुत बड़ी रही होगी।
इस स्थल के पास एक तालाब भी है, जिसके किनारे कुछ पत्थर दिखते हैं। ये पत्थर तालाब और इस जगह के बीच संबंध को दर्शाते हैं। कहा जाता है कि आल्हा-ऊदल यहां लोगों को न्याय देते थे और यह उनका प्रमुख स्थान था। तालाब तक एक सुरंग जाती थी, जिससे ये योद्धा तालाब में स्नान करने जाते थे।
चिल्ला गौहानी पहुंचना आसान है। प्रयागराज रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से आप टैक्सी या बस ले सकते हैं। संगम क्षेत्र से भी निजी वाहन या टैक्सी से यहां आ सकते हैं।
यहां आने वाले लोग न सिर्फ इतिहास की झलक देखते हैं, बल्कि इस जगह की प्राकृतिक सुंदरता का भी आनंद लेते हैं। चिल्ला गौहानी का शांत माहौल और इसका ऐतिहासिक महत्व इसे एक बेहतरीन जगह बनाता है, जहां लोग इतिहास में खो सकते हैं और उस युग की वीरता को महसूस कर सकते हैं। अगर आप प्रयागराज में हैं, तो चिल्ला गौहानी की यात्रा जरूर करें—यह आपके लिए एक यादगार अनुभव होगा।




