
मदन मोहन मालवीय पार्क, जिसे आमतौर पर मिटों पार्क के नाम से जाना जाता है, प्रयागराज में यमुना नदी के किनारे कीडगंज में लगता है। मिन्टो पार्क का नाम लार्ड मिंटो के नाम पर पड़ा, जो ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के वायसराय थे। 1910 में लार्ड मिंटो ने इस पार्क की आधारशिला रखी। उन्हीं के नाम पर इसे मिंटो पार्क कहा जाने लगा।
इस पार्क को उसी जगह बनाया गया है जहां 1 नवंबर 1858 को लार्ड कैनिंग ने महारानी विक्टोरिया का घोषणापत्र पढ़ा था। इस घोषणापत्र के पढे जाने के बाद भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत हुआ और देश ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया। यहीं से ब्रिटिश सरकार ने भारतीय राजाओं और जनता के अधिकारों का सम्मान करने का वादा किया था। इस पार्क में एक संगमरमर का स्मारक भी है, जो उस ऐतिहासिक घटना की याद दिलाता है। आज़ादी के बाद इसका नाम बदलकर महामना मदन मोहन मालवीय पार्क कर दिया गया। जो एक प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक थे।
यह पार्क लगभग 13 एकड़ यानि 21 बीघा में फैला हुआ है और इसमें एक स्तंभ है जिसके ऊपर चार शेरों वाला भारत का प्रतीक अंकित है। यह स्तंभ भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है। यहाँ पर ब्रिटिश शासन के दौरान कई महत्वपूर्ण घोषणाएँ की गई थीं, जिनमें 1908 में मिंटो-मॉर्ले सुधार भी शामिल था।
मदन मोहन मालवीय पार्क न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह स्थानीय निवासियों के लिए एक प्रमुख सामाजिक और सांस्कृतिक स्थल भी है। यहां विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और सार्वजनिक सभाएं आयोजित की जाती हैं। इसके अलावा, यह पार्क हरे-भरे वातावरण और शांतिपूर्ण स्थान के रूप में भी जाना जाता है, जो लोगों को आराम करने और प्रकृति का आनंद लेने का अवसर प्रदान करता है।
मदन मोहन मालवीय की विरासत को सम्मानित करने के लिए इस पार्क में समय-समय पर वृक्षारोपण और अन्य पर्यावरणीय गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं। यह स्थान न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए बल्कि पर्यावरण संरक्षण में रुचि रखने वाले लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।



