
प्रयाग में सबसे पुरानी चीज अगर इतिहास के नजरिए से देखा जाए तो वह है अशोक का स्तंभ। लगभग 35 फीट ऊंचाई वाला यह खंबा आखिर क्यों लगाया जाता था और इसके ऊपर लिखी हुई चीजों का क्या मतलब था?
एक राजा के लिए किसी राज्य को चलाना मुश्किल काम होता है। वह हमेशा यह चाहता है कि उसकी प्रजा उन नियमों का पालन करें जिसे राजा और उसका मंत्रिमंडल मिलकर बनाते हैं। अमूमन ऐसे नियम एक या दो लाइनों में नहीं लिखे जा सकते। उन्हें काफी बारीकी से हर चीज के बारे में समझा कर लिखना पड़ता है जिसमें बहुत सारा कागज़ इस्तेमाल होता है। कागज ने मानव इतिहास में बहुत गहरी भूमिका निभाई है जानकारियों को इकट्ठा करने में। लेकिन यह बारिश से लड़ नहीं सकते, यह गंदे हो जाते हैं, फट जाते हैं, अक्षर धीरे-धीरे धुंधले पड़ जाते हैं। इन्हीं सब कमियों की वजह से नियमों को किसी ऐसी जगह पर लिखना जरूरी था जिसे न पानी भिगोकर खराब कर सके, न आग जलाकर राख कर सके, जिस पर न ठंड का असर हो, न गर्मी का।
सम्राट अशोक के समय इसका एक कारगर तरीका खोजा गया। पत्थर से बने एक खंभे पर इन नियमों को लिखकर जगह-जगह लगा दिया जाता था। जिसे कहा जाता है- अशोक स्तंभ। यानि पत्थरों पर लिखा हुआ एक संविधान जिसे उस समय धर्म कहकर लोगों को इसका पालन करने के लिए कहा जाता था। हर नियम के पहले यह लिखा जाता था कि देवताओं के प्रिय राजा ने ऐसा कहा है कि सभी लोग धर्म का पालन करें। फिर उस धर्म में क्या-क्या चीजें आती है इसकी बारीकियां को नीचे लिखकर समझाया जाता था। धर्म के शब्द का जो मतलब निकाला जाता है वह है धारण करने लायक।
जो लोग स्तंभ पर लिखे हुए धर्म का पालन नहीं करते थे उन्हें अपराधी कहा जाता था और राजा और उसके मंत्रिमंडल के सामने उसे पूरा मौका दिया जाता था कि वह यह साबित करें कि उसने धर्म का पालन किया है अधर्म नहीं किया है। यदि वह साबित करता था तो उसे छोड़ दिया जाता था लेकिन अगर उसे कोई भी अपराध किया है तो इसके लिए काफी सख्त सजा दी जाती थी ताकि कोई भी अधर्मी न बने और धर्म के रास्ते पर चलते हुए अपना जीवन जिए।
प्रयाग के किले के भीतर जो अशोक स्तंभ मौजूद है उसके ऊपर लिखी हुई चीजों को देखने से पता चलता है कि सन 232 ईसवी में सम्राट अशोक की आज्ञा से इसे कौशांबी में खड़ा किया गया था। इसके बारे में कोई लिखित जानकारी मौजूद नहीं है जिससे यह पता चले कि कौशांबी से कब, किसने और क्यों इसे उठाकर यहां तक लाया। इतिहास की गहरी समझ रखने वाले लोगों का मानना है कि तुगलक वंश का शासक फिरोजशाह ने ऐसे कई स्तंभ उखाड़ कर दिल्ली में लगवाए थे। 1351 से लेकर 1388 तक के बीच फिरोज शाह ने दिल्ली पर राज किया था तो मुमकिन है इसी दौरान यह काम किया गया होगा।
इस स्तंभ पर सम्राट अशोक के साथ ही उनकी रानी, समुद्रगुप्त और जहांगीर के खुदवाए हुए अभिलेख मौजूद हैं। बीरबल का एक लेख हिंदी में भी गुदा हुआ है। किसी समय यह स्तंभ जमीन पर पड़ा हुआ था। लोग इसे भीम की गदा कहते थे। बहुत पुरानी भाषा प्राकृत में इसके ऊपर अक्षर गुदे हुए थे जिसे समझना आम लोगों के बस का नहीं था। सबसे पहले जेम्स प्रिंसेप ने प्राकृत भाषा की ब्राह्मी लिपि के इस लेख को गहराई से समझा और फिर इसका मतलब निकालने की कोशिश की। फिर कई विद्वान इस काम में लग गए और आखिरकार पंडित राधाकांत शर्मा की मदद से इस पर लिखे हुए सभी लेखो को पढ़ लिया गया।


