
प्रयागराज में जुलाई से सितंबर के बीच मानसून के दौरान बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है, जब गंगा और यमुना नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ता है। इस समय, छोटा बघाड़ा इलाका विशेष रूप से प्रभावित होता है। जैसे ही बारिश तेज होती है, गंगा का पानी बढ़कर छोटा बघाड़ा के घरों में घुसने लगता है। यह इलाका न केवल स्थानीय निवासियों बल्कि बाहर से आए छात्रों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो यहां पढ़ाई के लिए रहते हैं।
हर साल बाढ़ के दौरान, छोटा बघाड़ा के कई हिस्सों में पानी भर जाता है। सड़कों पर पानी का स्तर इतना बढ़ जाता है कि लोग नावों का सहारा लेने लगते हैं। यहां की गलियों में घुटने तक पानी भर जाता है, जिससे लोगों को अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ता है। लगभग 5 लाख लोग हर साल इस बाढ़ से प्रभावित होते हैं, और उन्हें सरकारी कैंपों में शरण लेनी पड़ती है।
छोटा बघाड़ा में बड़ी संख्या में छात्र रहते हैं, जो बाढ़ के समय विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। बाढ़ के कारण कई बार उनकी परीक्षाएं और पढ़ाई बाधित होती है। परीक्षा की तारीखों के दौरान बाढ़ आ जाने से उन्हें विशेष कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। छात्रों को मजबूरन अपने स्थान को छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ता है, जिससे उनकी पढ़ाई में रुकावट आती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि बाढ़ का सबसे बड़ा कारण बरसात के समय में डैम का पानी छोड़ना है, जिससे गंगा का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है। प्रशासन द्वारा राहत शिविरों की व्यवस्था की जाती है, लेकिन हर साल बाढ़ के समय लोगों को असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। अधिकारी और नेता आश्वासन देते हैं, लेकिन स्थायी समाधान की कमी के कारण हर साल वही स्थिति दोहराई जाती है।
छोटा बघाड़ा के निवासी और छात्र इस प्राकृतिक आपदा का सामना करने के लिए अपनी ओर से भी सतर्क रहते हैं। वे प्रशासन से बेहतर प्रबंधन और समय पर सहायता की उम्मीद करते हैं ताकि इस संकट का सामना कम से कम नुकसान के साथ किया जा सके। बाढ़ के दौरान, इन इलाकों में जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, लेकिन स्थानीय लोग अपनी हिम्मत और धैर्य के साथ इस संकट का सामना करते हैं।





