
प्रयागराज में बाढ़ का मौसम जुलाई से सितंबर के बीच आता है, जब मानसून की बारिश के कारण गंगा और यमुना नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है। इस दौरान, दारागंज का इलाका विशेष रूप से प्रभावित होता है। जैसे ही बारिश शुरू होती है, दारागंज के निवासी बाढ़ की संभावनाओं को लेकर सतर्क हो जाते हैं, क्योंकि गंगा और यमुना का जलस्तर तेजी से बढ़ता है और निचले इलाकों में पानी भर जाता है।
दारागंज के कई हिस्सों में पानी भरने लगता है, खासकर नागवासुकी मंदिर के आसपास के इलाके और बगल के निचले क्षेत्र। जैसे ही जलस्तर बढ़ता है, लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। प्रशासन द्वारा राहत शिविरों की व्यवस्था की जाती है, जहां प्रभावित लोगों को आश्रय और भोजन की सुविधा मिलती है। हालांकि, बिजली की कमी और अन्य असुविधाओं के कारण रातें अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाती हैं।
इतिहास में कई बार प्रयागराज में भयंकर बाढ़ आई है। 1978 की बाढ़ सबसे गंभीर थी, जब गंगा का जलस्तर 97.98 मीटर तक पहुंच गया था। हाल के वर्षों में भी बाढ़ की स्थिति गंभीर रही है। 2024 में, गंगा और यमुना का जलस्तर एक मीटर से अधिक बढ़ गया था, जिससे हजारों लोग प्रभावित हुए थे और उन्हें राहत शिविरों में स्थानांतरित किया गया था।
दारागंज के लोग हर साल इस प्राकृतिक आपदा का सामना करते हैं और प्रशासन से बेहतर प्रबंधन और समय पर सहायता की उम्मीद रखते हैं। बाढ़ के दौरान, इन इलाकों में जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, लेकिन स्थानीय लोग अपनी हिम्मत और धैर्य के साथ इस संकट का सामना करते हैं। प्रशासन द्वारा राहत कार्यों के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें तैनात की जाती हैं, ताकि प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा सके और उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान की जा सके।



