
प्रयागराज में बाढ़ का समय आमतौर पर जुलाई से सितंबर के बीच होता है, जब मानसून की बारिश के कारण गंगा और यमुना नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है। इस दौरान, संगम क्षेत्र के पास स्थित नैनी का अरैल घाट इलाका विशेष रूप से प्रभावित होता है। जैसे ही बारिश शुरू होती है, गंगा और यमुना का पानी तेजी से बढ़ने लगता है और अरैल घाट के आसपास के निचले इलाकों में भर जाता है।
अरैल घाट और उसके आसपास के क्षेत्र, जैसे कि रामघाट, काली घाट, और ककरहा घाट, बाढ़ के पानी से डूब जाते हैं। इन इलाकों में पानी का स्तर इतना बढ़ जाता है कि कई घरों की पहली मंजिल तक पानी पहुंच जाता है। लोग अपने घरों की छतों पर शरण लेते हैं और नावों का सहारा लेकर सुरक्षित स्थानों पर जाते हैं। इस क्षेत्र में कई परिवार बाढ़ के कारण प्रभावित होते हैं और उन्हें राहत शिविरों में स्थानांतरित किया जाता है।
इतिहास में कई बार प्रयागराज में भयंकर बाढ़ आई है। हाल ही में, 2024 में, गंगा और यमुना का जलस्तर तेजी से बढ़ा, जिससे अरैल घाट के आसपास के सैकड़ों घरों में पानी घुस गया। प्रशासन द्वारा राहत कार्यों के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें तैनात की गईं और प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया।
बाढ़ के दौरान, अरैल घाट पर धार्मिक गतिविधियाँ भी प्रभावित होती हैं। श्रद्धालु जो यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं, उन्हें भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। व्यापारियों को अपनी दुकानों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना पड़ता है। प्रशासन द्वारा राहत शिविरों में भोजन और आश्रय की व्यवस्था की जाती है, लेकिन बिजली की कमी के कारण रातें अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाती हैं।
अरैल घाट का यह इलाका हर साल बाढ़ की चपेट में आता है, और स्थानीय लोग इस प्राकृतिक आपदा का सामना करने के लिए अपनी ओर से भी सतर्क रहते हैं। प्रशासन से वे बेहतर प्रबंधन और समय पर सहायता की उम्मीद करते हैं ताकि इस संकट का सामना कम से कम नुकसान के साथ किया जा सके।

