
प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, हर साल मानसून के दौरान बाढ़ की चपेट में आता है, विशेष रूप से जुलाई से सितंबर के महीनों में। इस दौरान गंगा और यमुना नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ता है, जिससे शहर के कई इलाके प्रभावित होते हैं। कीडगंज इलाका, जो यमुना नदी के किनारे स्थित है, बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है।
बाढ़ के समय, गंगा और यमुना नदियों का जलस्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, यमुना नदी का जलस्तर नैनी में 82.12 मीटर तक पहुंच सकता है, जबकि गंगा का जलस्तर फाफामऊ में 81.33 मीटर तक दर्ज किया गया है। इस जलस्तर वृद्धि के कारण कीडगंज और उसके आसपास के इलाके जैसे दारागंज, झूंसी, नैनी, और सलोरी में पानी भर जाता है। इन क्षेत्रों में सड़कों पर पानी भरने से यातायात बाधित होता है और कई घरों में पानी घुस जाता है, जिससे लोग अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं।
इतिहास में, प्रयागराज में कई बार भयंकर बाढ़ आई है, जिनमें 1978 और 2013 की बाढ़ उल्लेखनीय हैं। इन वर्षों में गंगा और यमुना नदियों ने खतरे के निशान को पार कर लिया था, जिससे हजारों लोग बेघर हो गए थे और कई को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी थी।
कीडगंज और उसके आसपास के इलाकों में रहने वाले लोग बाढ़ से काफी प्रभावित होते हैं। बाढ़ के कारण बिजली की आपूर्ति बाधित हो जाती है, और पीने के पानी की कमी हो जाती है। लोग अपने घरों की ऊपरी मंजिलों पर शरण लेते हैं, और कई बार नावों का सहारा लेना पड़ता है। प्रशासन द्वारा राहत शिविरों में भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था की जाती है, लेकिन फिर भी कई परिवारों को खाने-पीने की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
बाढ़ का प्रभाव केवल भौतिक क्षति तक सीमित नहीं है; यह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर डालता है। बाढ़ के बाद पुनर्वास और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया लंबी और कठिन होती है, जिससे प्रभावित लोगों को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ता है।


