ऋषि भारद्वाज एक प्राचीन भारतीय ऋषि थे, जिन्हें वैदिक काल के सात महान ऋषियों (सप्तर्षियों) में से एक माना जाता है। वे ब्रह्मा, बृहस्पति और इंद्र के बाद चौथे व्याकरण प्रवक्ता थे और उन्होंने इंद्र से आयुर्वेद और व्याकरण का ज्ञान प्राप्त किया था. ऋषि भारद्वाज ने आयुर्वेद, व्याकरण, धनुर्वेद, राजनीतिशास्त्र, और अन्य कई विषयों पर ग्रंथों की रचना की थी.
प्रयागराज से उनका संबंध विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्हें प्रयाग का प्रथम वासी माना जाता है, अर्थात उन्होंने ही प्रयाग को बसाया था। उन्होंने यहाँ एक विशाल गुरुकुल की स्थापना की थी, जहाँ वे हजारों वर्षों तक विद्या दान करते रहे[4][5]. इसके अलावा, रामायण के अनुसार, भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान भारद्वाज ऋषि के आश्रम में विश्राम किया था, जो प्रयागराज में स्थित था. इस प्रकार, ऋषि भारद्वाज का प्रयागराज से गहरा ऐतिहासिक और धार्मिक संबंध है।