
प्रयागराज के शिवकुटी क्षेत्र में स्थित रामबाग महल की कहानी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों से जुड़ी हुई है। यह स्थान गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है और इसके पीछे एक दिलचस्प इतिहास है।

रामबगिया शिवकुटी की कहानी
रामबाग महल का संबंध नेपाल के प्रधानमंत्री पराक्रम जंग बहादुर सिंह राणा से है। 1857 के विद्रोह के बाद, नेपाल के राजा ने राणा से नाराज होकर उन्हें देश छोड़ने का आदेश दिया। अंग्रेजों से अच्छे संबंधों के चलते, राणा को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के शिवकुटी क्षेत्र में गंगा किनारे 150-200 एकड़ जमीन दी गई। हालांकि, राणा परिवार यहां आर्थिक समृद्धि नहीं अर्जित कर सका। राणा की मृत्यु के बाद, परिवार ने अपनी चल संपत्ति बेचकर जीवन यापन किया और धीरे-धीरे अचल संपत्ति भी दूसरों को बेच दी।

नारायणी आश्रम की स्थापना
राणा की बहन नारायणी देवी ने विवाह नहीं किया और आध्यात्म की ओर आकर्षित होकर शिवकुटी में एक आश्रम की स्थापना की, जो बाद में नारायणी आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राणा की विधवा ने भी संन्यास लेकर नारायणी देवी की शिष्या बनकर आश्रम में स्थान पाया।

रामबगिया का वर्तमान
रामबाग, जो कभी राणा परिवार की संपत्ति थी, अब श्री रामचरणदास टण्डन के परिवार की संपत्ति है। यह स्थान न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है बल्कि यहां कोटेश्वर महादेव का मंदिर भी स्थित है, जो स्थानीय धार्मिक आयोजनों का केंद्र है।

इस प्रकार, रामबाग महल न केवल ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है।