
डॉ. आत्माराम एक जाने-माने भारतीय वैज्ञानिक थे, जिनका जन्म 12 अक्टूबर 1908 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के पीलना गाँव में हुआ था। वे खासतौर पर चश्मे के काँच बनाने में माहिर थे और उन्होंने विज्ञान की पढ़ाई को अपनी भाषा में करने पर जोर दिया। लोग उन्हें 'गांधीवादी विज्ञानी' भी कहते थे।
पढ़ाई-लिखाई
डॉ. आत्माराम ने अपनी शुरुआती पढ़ाई कानपुर में की और बीएससी की डिग्री ली। इसके बाद वे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) गए, जहाँ से उन्होंने एमएससी और पीएचडी की डिग्री हासिल की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान उनका वैज्ञानिक सोचने का तरीका और भी विकसित हुआ।
काम और उपलब्धियाँ
पढ़ाई पूरी करने के बाद, डॉ. आत्माराम ने काँच और मिट्टी के बर्तनों पर गहराई से काम किया। उन्होंने खास तरह का काँच बनाया जो सूक्ष्मदर्शी और सेना के उपकरणों में काम आता है। पहले यह काँच भारत बाहर से मंगवाता था, लेकिन आत्माराम जी की मेहनत से अब यह देश में ही बनने लगा, जिससे पैसे की बचत हुई और देश की ताकत बढ़ी।
1967 में उन्हें वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) का प्रमुख बनाया गया। उनके काम को सोवियत रूस ने भी सराहा और उन्हें 'डॉक्टर ऑफ टेक्नोलॉजी' की उपाधि दी।
हिंदी के प्रति लगाव
आत्माराम जी चाहते थे कि विज्ञान की पढ़ाई हिंदी में हो, ताकि हर कोई इसे आसानी से समझ सके। उन्होंने महसूस किया कि जब उन्हें रसायन विज्ञान हिंदी में समझाया गया, तो उनकी समझ काफी बढ़ गई।
प्रयागराज से संबंध
प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) से आत्माराम जी का खास रिश्ता था क्योंकि उन्होंने यहाँ के विश्वविद्यालय से एमएससी और पीएचडी की पढ़ाई की थी। इस शिक्षा ने उनके करियर को सही दिशा दी और उन्हें एक सफल वैज्ञानिक बनने में मदद की।
सम्मान और विरासत
डॉ. आत्माराम को 1959 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार और पद्म श्री जैसे बड़े सम्मान मिले। उनकी याद में 'केन्द्रीय हिन्दी संस्थान' हर साल 'आत्माराम पुरस्कार' देता है, जो विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में अच्छा काम करने वालों को मिलता है।
डॉ. आत्माराम का निधन 6 फरवरी 1983 को हुआ, लेकिन उनके काम को आज भी याद किया जाता है। वे भारतीय विज्ञान जगत के लिए प्रेरणा बने हुए हैं।