शास्त्री ब्रिज- पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के नाम पर 1966-67 के बीच प्रयागराज को वाराणसी से जोड़ने के लिए झूंसी पुल का निर्माण कार्य शुरू किया गया। गंगा नदी पर 2 किलोमीटर लंबे इस पुल को बनाने का काम कोलकाता की जोशी एंड कंपनी को सौंपा गया। नदी के घटते बढ़ते जलस्तर से पुल को बनाने में कठिनाई आ रही थी। जिसके कारण कंपनी को काफी नुकसान सहना पड़ा और आखिरकार 7 साल के बाद पुल को अधूरा छोड़ कर कंपनी भाग खड़ी हुई।
सन 1973 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में ब्रिज कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया का गठन किया गया। झूंसी के आधे-अधूरे पुल को पूरा करने की जिम्मेदारी अब इस निगम की थी। निगम ने बहुत ही शानदार काम किया और 1980 तक इस पुल को पूरा करके नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) को सौंप दिया। जिसके बाद इस पुल को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़कर यहां पर टोल की स्थापना की गई। 30 साल तक इस पुल की देखरेख की जिम्मेदारी NHAI ने ही निभाई। इस दौरान आने जाने वाले वाहनों से टोल टैक्स भी वसूला जाता था। 26 जुलाई 2010 को पुल की सुरक्षा व रखरखाव की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग को सौंप दी गई। अपनी 2 किलोमीटर की लंबाई के कारण यह प्रयागराज का सबसे लंबा पुल माना जाता है।
सन 1973 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में ब्रिज कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया का गठन किया गया। झूंसी के आधे-अधूरे पुल को पूरा करने की जिम्मेदारी अब इस निगम की थी। निगम ने बहुत ही शानदार काम किया और 1980 तक इस पुल को पूरा करके नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) को सौंप दिया। जिसके बाद इस पुल को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़कर यहां पर टोल की स्थापना की गई। 30 साल तक इस पुल की देखरेख की जिम्मेदारी NHAI ने ही निभाई। इस दौरान आने जाने वाले वाहनों से टोल टैक्स भी वसूला जाता था। 26 जुलाई 2010 को पुल की सुरक्षा व रखरखाव की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग को सौंप दी गई। अपनी 2 किलोमीटर की लंबाई के कारण यह प्रयागराज का सबसे लंबा पुल माना जाता है।







