लेटे हुए बड़े हनुमान जी संगम प्रयागराज

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प्रयागराज के लेटे हुए हनुमान मंदिर की रहस्यमयी कहानी

प्रयागराज के त्रिवेणी संगम के पास है एक अनोखा और प्राचीन मंदिर जहां 20 फिट लंबी हनुमान जी की लेटी हुई मूर्ति स्थापित है, जो न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसके साथ कई रहस्यमयी और रोमांचक घटनाएँ भी जुड़ी हुई हैं। इस मंदिर में भगवान हनुमान की विशाल प्रतिमा लेटी हुई मुद्रा में है, जो इसे अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग बनाती है। आइए जानते हैं इस मंदिर की अद्भुत कहानी।

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प्रयागराज के लेटे हुए हनुमान मंदिर की पौराणिक कथा

इस मंदिर के बारे में ऐसी धारणा है कि जब श्री राम लंका से लौटकर अयोध्या की ओर जा रहे थे तो उन्होंने हनुमान जी को यहां पर विश्राम करने के लिए कहा था। हनुमान जी जब यहां पर लेट कर विश्राम कर रहे थे तो उनके शरीर के नीचे की मिट्टी उनके वजन के कारण पत्थर में बदल गई। यह पत्थर हजारों सालों से संगम क्षेत्र में मौजूद था।

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प्रयागराज के लेटे हुए हनुमान प्रतिमा की एक और कहानी

कहानी की शुरुआत होती है सैकड़ों साल पहले, जब एक समृद्ध व्यापारी, जो कन्नौज का रहने वाला था, भगवान हनुमान के प्रति अत्यंत श्रद्धालु था। वह अपने जीवन में संतान सुख से वंचित था और इसी कारण उसने भगवान हनुमान की एक विशाल मूर्ति बनवाई। यह मूर्ति विन्ध्याचल की पहाड़ियों से निकले पत्थरों से बनाई गई थी। व्यापारी ने सोचा कि अगर वह इस मूर्ति को भारत के पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान कराएगा, तो उसकी मनोकामना पूरी हो जाएगी।

जब व्यापारी प्रयागराज के संगम पहुँचा, तो उसने रात को वहीं विश्राम किया। उसी रात उसे एक सपना आया जिसमें हनुमान जी ने कहा कि अगर वह इस मूर्ति को यहीं छोड़ देगा, तो उसकी सभी इच्छाएँ पूरी हो जाएँगी। व्यापारी ने सुबह उठकर मूर्ति को संगम के पास छोड़ दिया और वापस कन्नौज लौट गया। कुछ समय बाद उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिससे व्यापारी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

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प्रयागराज संगम पर लेटे हुए हनुमान जी की मूर्ति का गायब होना

समय बीतता गया और धीरे-धीरे वह मूर्ति गंगा और यमुना नदी के पानी में डूब गई। कई सालों तक यह मूर्ति रेत के नीचे दबी रही, और लोग इसे भूल गए। लेकिन फिर एक दिन, एक संत महात्मा बालगिरी जी महाराज जब संगम पर अपनी धूनी रमाने आए, तो उन्हें खुदाई के दौरान कुछ कठोर वस्तु महसूस हुई। जब उन्होंने और खुदाई की, तो यह वही हनुमान जी की मूर्ति निकली। महात्मा जी ने इसे पहचान लिया और इसके महत्व को समझते हुए वहीं पर मंदिर की स्थापना कर दी।

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लेटे हुए हनुमान मंदिर को हटाने के लिए अकबर और औरंगज़ेब का प्रयास

1582 के आसपास जब अकबर ने संगम क्षेत्र पर एक विशाल किले के निर्माण की योजना बनाई ताकि सेना एवं अन्य युद्ध से संबंधित सामग्रियों को एक जगह इकट्ठा किया जा सके तब इस किले के निर्माण में कई बार व्यवधान उत्पन्न हुआ। बार-बार गंगा और यमुना नदियों में आने वाली बाढ़ के कारण किले का कुछ हिस्सा ढह जाता था। सन्यासियों के आग्रह पर गंगा और यमुना नदियों को शांत करने के लिए तथा किले को उनके प्रकोप से बचाने के लिए खुदाई के समय निकले हुए इस विशाल पत्थर पर हनुमान जी की प्रतिमा को तराशा गया और उसके बाद गंगा और यमुना के प्रवाह को किले के भीतर जाने से रोकने के लिए सबसे पहले बाहरी दीवाल का निर्माण तेजी से किया गया। इसके साथ ही यमुना से लेकर गंगा तक एक लंबे बांध का भी निर्माण किया गया।

एक दूसरी कहानी के हिसाब से जब सम्राट अकबर ने प्रयागराज किले का निर्माण करवाया, तो इस मंदिर का स्थान उसकी योजनाओं में बाधा डाल रहा था। अकबर ने आदेश दिया कि इस मूर्ति को हटाकर कहीं और स्थापित किया जाए ताकि किले की दीवार सीधी बनाई जा सके। लेकिन जब मजदूरों ने मूर्ति को उठाने की कोशिश की, तो हर बार मूर्ति और गहराई में धंसती चली गई। कई असफल प्रयासों के बाद अकबर ने हार मान ली और किले की दीवार को घुमावदार बनाकर मंदिर को वहीं छोड़ दिया।

बाद में, मुगल शासक औरंगज़ेब ने भी इस मूर्ति को हटाने का प्रयास किया, लेकिन हर बार वही हुआ—मूर्ति अपनी जगह से हिलने के बजाय धरती में और धंस जाती थी। आखिरकार, औरंगज़ेब ने भी इसे छोड़ने का फैसला किया।

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प्रयागराज संगम पर लेटे हुए हनुमान मंदिर का गंगा नदी द्वारा हर साल स्नान

इस मंदिर से जुड़ी सबसे अद्भुत घटना यह है कि हर साल जब गंगा नदी का जलस्तर बढ़ता है, तो पानी मंदिर तक पहुँच जाता है और ऐसा लगता है मानो गंगा मैया खुद आकर हनुमान जी को स्नान करा रही हों। स्थानीय लोगों का मानना है कि जब तक भगवान हनुमान स्नान नहीं कर लेते, तब तक गंगा का जलस्तर कम नहीं होता। यह घटना हर साल मानसून के दौरान होती है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

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प्रयागराज संगम पर लेटे हुए हनुमान मंदिर का आधुनिक समय में महत्व

आज भी यह मंदिर प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। यहाँ मंगलवार और शनिवार को विशेष पूजा होती है, जिसमें हजारों भक्त शामिल होते हैं। हाल ही में इस मंदिर के आसपास एक भव्य कॉरिडोर बनाने का काम शुरू हुआ है ताकि यहाँ आने वाले भक्तों को बेहतर सुविधाएँ मिल सकें।

इस प्रकार, संगम पर स्थित लेटे हुए हनुमान जी का यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि इसके साथ जुड़ी रहस्यमयी घटनाएँ इसे और भी खास बनाती हैं। चाहे वह अकबर और औरंगज़ेब द्वारा मूर्ति हटाने की असफल कोशिश हो या हर साल गंगा द्वारा भगवान हनुमान को स्नान कराने की अद्भुत घटना—यह स्थान आस्था और चमत्कारों से भरा हुआ है।

इस तरह से प्रयागराज के संगम भूमि पर स्थित लेटे हुए हनुमान मंदिर की अपनी एक महिमा है। जो पौराणिक काल से लेकर ऐतिहासिक कालखंड तक अपने अस्तित्व की गाथा का प्रसारण करता है।

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