
प्रयागराज में अकबर के किले का इतिहास
लिखित इतिहास के आधार पर ये किला 16वीं शताब्दी में यानि 400 साल पहले मुगल सम्राट अकबर ने बनवाया था। लगभग 20 हजार मजदूरों ने मिलकर इस किले को पूरा किया जिसमें 45 साल 5 महीने और 10 दिनों का लंबा समय लगा था। उस समय इसको बनाने में 6 करोड़ 17 लाख 20 हजार 224 रूपये की धनराशि खर्च की गई थी। 27 अक्टूबर 1605 को जब अकबर का देहांत हुआ तब भी ये किला निर्माणाधीन था और इसका सिर्फ एक ही भाग बनकर तैयार हो पाया था।

इलाहाबाद के किले का इतिहास और अवध के नवाब
अंग्रेजों के साथ बक्सर की लड़ाई में हारने के बाद 12 अगस्त 1765 को रॉबर्ट क्लाइव और शाह आलम द्वितीय के बीच इलाहाबाद की प्रथम संधि हुई। शाह आलम के दिल्ली भागने के बाद 1773 ईस्वी तक इस किले पर अंग्रेजों का पूरा अधिकार हो गया था। किले के रख रखाव का खर्च इतना अधिक था कि अंग्रेजों ने 1775 ईसवी में अवध के नवाब शुजाउददौला को 50 लाख रूपये में यह किला बेच दिया। उसके बाद उनके पर पोते शहादत अली खाँ दितीय ने आर्थिक तंगी के चलते 1798 में अंग्रेजों को फिर से ये किला दे दिया।

इलाहाबाद का किला और सम्राट अशोक का संबंध
ऐसा भी माना जाता है कि 272 से 232 ई पूर्व यानी आज से 2200 साल पहले इस किले का कुछ हिस्सा सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था। किले के पास मौजूद अशोक स्तंभ इस बात को प्रमाणित करता है। लोग ऐसा भी कहते हैं कि किले के भीतर सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए एक विशाल बौद्ध मठ भी स्थापित किया था जिसमें बौद्ध भिक्षुओं के रहने, खाने और सोने की उत्तम व्यवस्था थी। जिसे बाद में अकबर ने अपने कब्जे में लेकर इसमें काफी फेरबदल किया।

इलाहाबाद किले का विवाद
इस किले से जुड़ी हुई कई विवादित घटनाएं हैं। इसके भीतर अक्षयवट वृक्ष और सरस्वती कूप नामक एक गहरा कुआं था जिसमें मोक्ष पाने के लिए लोग कूदकर अपनी जान दे दिया करते थे। इसका जिक्र राजा हर्षवर्धन के समय में भारत की यात्रा कर रहे व्हेन सांग नाम चीनी यात्री ने अपनी पुस्तक सि-यू-की में किया है।

इलाहाबाद किले में क्यों अंदर जाना मना है?
ऐसी ही विवादित घटनाओं के कारण किले के भीतर जाकर इसे देखने की गहरी इच्छा पैदा होती है लेकिन भारत के आजाद होने के बाद से आज तक यह किला सेना के अधिकार में है और लोगों के घूमने के लिए इसका सिर्फ एक ही हिस्सा खोला गया है पातालपुरी मंदिर और अक्षयवट।

अकबर का किला प्रयागराज में कहाँ है?
प्रयागराज स्टेशन से यह किला लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी के किनारे मौजूद है। इसी किले से ही संगम क्षेत्र की शुरुआत होती है जहां पर हर वर्ष माघ मेला, 6 वर्षों पर अर्ध कुंभ और 12 वर्षों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। जिसमें लाखों-करोड़ों की संख्या देश-विदेश से आने वाले पर्यटक शामिल होते हैं।