
प्रयागराज के खैरागढ़ किले का रहस्य
प्रयागराज के खैरागढ़ किले की कहानी एक दिलचस्प और रहस्यमयी इतिहास से भरी हुई है। यह किला टोंस नदी और बरसैता नाले के संगम पर मौजूद है। मेजा तहसील के मेजा ब्लॉक में तीन गांवों के बीच लगभग 33 बीघे में ये किला फैला हुआ है- लूटर, बरसैता और सिंहपुर कला। इसकी एक दीवाल 300 और दूसरी 330 मीटर लंबी है। इसे मुगलकालीन धरोहरों में से एक माना जाता है। हालांकि यह कब बना इसके बारे में कोई भी लिखित कागजात मौजूद नहीं है, लेकिन स्थानीय बुजुर्गों और कहानियों से इसके बारे में कई रोचक बातें सामने आती हैं।

प्रयागराज के खैरागढ़ किले का रहस्यमय इतिहास
कहा जाता है कि जब इलाहाबाद (प्रयागराज) में अकबर का किला बन रहा था, तो दक्षिण में टोंस नदी के उस पार निगरानी और टैक्स वसूलने के लिए मुगल अधिकारियों और सैनिकों के लिए खैरागढ़ में एक ठिकाना बनाया जा रहा था। दोनों किलों के पहले बनने के बीच एक होड़ सी लग गई। तय हुआ कि जो किला पहले पूरा होगा उसके सबसे ऊपरी बुर्ज पर रात में बड़ी मशाल जलाई जाएगी।

प्रयागराज के खैरागढ़ किले के इतिहास से जुड़ी अफवाहें
एक दिन इलाहाबाद किले में काम कर रहे एक मिस्त्री की कन्नी (औजार) नीचे गिर गई, जिसे ढूंढने के लिए उसने मशाल जला दी। इलाहाबाद किले से 33 किलोमीटर दूर घनघोर अमावश की रात में टोंस नदी के किनारे बनाए गए एक ऊंचे मचान पर बैठे चौकीदार ने मजदूरों को बुलाकर दूर चमकती रोशनी दिखाई। खैरागढ़ के मजदूरों ने जब यह देखा तो उन्हें लगा कि इलाहाबाद किले का काम पूरा हो गया है। उन्होंने सोचा की अगर वो जिंदा रहे तो मुगल राजा के कहने पर उनके हाथ काट दिए जाएगे। इसी धोखे में, खैरागढ़ के मुगल अधिकारी और मजदूरों ने संकोच और डर से उफनाई टोंस नदी में कूदकर अपनी जान दे दी। इस तरह से खैरागढ़ किले का काम अधूरा ही रह गया। हालाकी ये बस अफवाह है इसका कोई लिखित प्रमाण मौजूद नहीं है। क्योंकि 33 किलोमीटर दूर से किसी जलती मशाल को देख पाना संभव नहीं है।

प्रयागराज के खैरागढ़ का किला अधूरा क्यों रह गया?
हालांकि, मुगल दौर में लिखी किताबों में इलाहाबाद के किले का जिक्र मिलता है, लेकिन खैरागढ़ किले का इलाहाबाद किले से संबंध होने का कोई सबूत नहीं मिलता। इस कारण से यह सवाल उठता है कि खैरागढ़ किले को असल में किसने बनवाया था? इलाहाबाद गजेटियर के हिसाब से, खैरागढ़ परगना कभी राजा रामगोपाल सिंह मांडा के पूर्वजों की रियासत का हिस्सा था। इतिहासकारों के हिसाब से गुड्डन देव ने 1542 के आसपास मांडा रियासत की स्थापना की थी, जो बाबर और हुमायूं के समय की बात है। कुछ लोग मानते हैं की शेरशाह सूरी (1540-1545) के दौर में ये किला बनाना शुरू हुआ लेकिन 22 मई 1545 को जब शेरशाह सूरी की मौत हुई तो ये किला अधूरा ही रह गया।

प्रयागराज के खैरागढ़ किले की अनदेखी
आज खैरागढ़ किला प्रशासनिक लापरवाही और समय की मार झेल रहा है। यह अपने सीने में सैकड़ों राज दफन किए हुए है और धीरे-धीरे ध्वस्त होता जा रहा है। पुरातत्व विभाग और इतिहासकारों को इस जगह पर गहन शोध करके नई जानकारियां निकालने की कोशिश करनी चाहिए।

प्रयागराज का खैरागढ़ किला कहाँ है?
प्रयागराज से खैरागढ़ किले तक पहुँचने के लिए कई मार्ग उपलब्ध हैं। यह किला प्रयागराज से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है। सड़क मार्ग से आप मेजारोड बाजार होते हुए कोहड़ार मार्ग पर जाकर खैरागढ़ किले तक पहुँच सकते हैं। यह यात्रा लगभग 45 मिनट से एक घंटे का समय ले सकती है, जो आपके वाहन और ट्रैफिक की स्थिति पर निर्भर करता है।

प्रयागराज के खैरागढ़ किले तक कैसे पहुंचे?
अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको प्रयागराज जंक्शन तक आना होगा, जो इस क्षेत्र का मुख्य रेलवे स्टेशन है। हालांकि, खैरागढ़ के लिए सीधी ट्रेन सेवा उपलब्ध नहीं है, इसलिए आपको पहले प्रयागराज से मेजा रोड रेलवे स्टेशन तक ट्रेन से आना होगा और फिर वहाँ से सड़क मार्ग द्वारा खैरागढ़ जाना होगा।

प्रयागराज के खैरागढ़ किले तक सड़क से कैसे पहुंचे?
प्रयागराज से खैरागढ़ किले तक पहुँचने के लिए टैक्सी या बस सेवा का उपयोग किया जा सकता है। बसें और टैक्सियाँ नियमित रूप से मेजारोड बाजार के लिए उपलब्ध होती हैं, जहाँ से आप 5 किलोमीटर कोहड़ार मार्ग पर आगे बढ़ते हुए बरसैता नदी पर बने पुल तक पहुँच सकते हैं जहां से ये किला दूर से एक पहाड़ की तरह नजर आता है।

प्रयागराज के खैरागढ़ किले का आकर्षण
खैरागढ़ किले की यात्रा के दौरान आप टोंस नदी के सुंदर दृश्य का आनंद ले सकते हैं, जो इस ऐतिहासिक स्थल के पास बहती है। यह यात्रा इतिहास प्रेमियों और प्रकृति प्रेमियों दोनों के लिए एक शानदार अनुभव हो सकती है।
