
धर्मवीर भारती एक प्रसिद्ध हिंदी लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। उनका जन्म 25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे और उनकी रचनाएँ आज भी साहित्यिक जगत में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
धर्मवीर भारती का जन्म इलाहाबाद के अतर सुइया मोहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता चिरंजीव लाल वर्मा और माँ चंदा देवी थीं। उनके पिता का निधन जल्दी हो गया, जिससे परिवार को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा डी.ए.वी. हाई स्कूल, इलाहाबाद से प्राप्त की और फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया। वे अपने समय के मेधावी छात्र थे और उन्हें 'चिंतामणि घोष पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। उन्होंने डॉ. धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में 'सिद्ध साहित्य' पर शोध कर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
करियर
धर्मवीर भारती ने अपने करियर की शुरुआत 'अभ्युदय' और 'संगम' पत्रिकाओं के उप-संपादक के रूप में की। बाद में वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक बने। 1960 में वे मुंबई चले गए, जहाँ उन्होंने 'धर्मयुग' पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में कार्य किया। उनके नेतृत्व में यह पत्रिका भारत की सबसे लोकप्रिय हिंदी साप्ताहिक पत्रिका बन गई।
प्रमुख रचनाएँ
उपन्यास- 'गुनाहों का देवता', 'सूरज का सातवां घोड़ा'
नाटक- 'अंधा युग'
कविता संग्रह- 'कनुप्रिया', 'ठंडा लोहा', 'सात गीत वर्ष'
निबंध संग्रह- 'ठेले पर हिमालय', 'पश्यन्ती'
उनकी रचना 'गुनाहों का देवता' एक सदाबहार उपन्यास माना जाता है, जबकि 'अंधा युग' महाभारत युद्ध के अंतिम दिन पर आधारित एक प्रसिद्ध नाटक है।
पुरस्कार और सम्मान
धर्मवीर भारती को 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन पुरस्कार, और महाराष्ट्र गौरव जैसे कई अन्य सम्मान प्राप्त हुए।
प्रयागराज से संबंध
प्रयागराज (इलाहाबाद) से धर्मवीर भारती का गहरा संबंध था क्योंकि उन्होंने यहाँ अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की और यहीं से अपने साहित्यिक करियर की शुरुआत की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने उनके जीवन को आकार दिया और उन्हें एक सफल लेखक बनने में मदद की। उनका यह संबंध उनके लेखन और विचारों पर स्थायी प्रभाव डालने वाला साबित हुआ।
धर्मवीर भारती का निधन 4 सितंबर 1997 को मुंबई में हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं और हिंदी साहित्य में उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।