
प्रयागराज के पास हंडिया से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित लाक्षागृह एक ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल है, जो महाभारत की कथा से जुड़ा हुआ है। यह वही स्थान है जहां दुर्योधन ने पांडवों को जलाने की साजिश रची थी। लाक्षागृह का निर्माण लाख (मोम) से किया गया था ताकि आग लगने पर यह आसानी से जल सके। इस षड्यंत्र के पीछे दुर्योधन की मंशा थी कि पांडवों को खत्म कर दिया जाए ताकि वे सत्ता के दावेदार न बन सकें।
किंवदंती के अनुसार, विदुर ने पांडवों को इस षड्यंत्र के बारे में पहले ही आगाह कर दिया था और उन्हें एक सुरंग बनाने की सलाह दी थी। इसी सुरंग के माध्यम से पांडव इस आग से बचकर बाहर निकलने में सफल हुए थे। यह सुरंग आज भी इस स्थल पर देखने को मिलती है और इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
लाक्षागृह का यह स्थल अब एक संरक्षित खंडहर है और इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किया गया है। यहां पर महाभारत कालीन सभ्यता के अवशेष भी मिले हैं, जो इस स्थान की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करते हैं। इस स्थान पर एक गुरुकुल भी है जहां परंपरागत शिक्षा दी जाती है और यहां पर नियमित रूप से यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं।
लाक्षागृह की यात्रा न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए बल्कि उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो भारतीय पौराणिक कथाओं और महाभारत के प्रसंगों में रुचि रखते हैं। यह स्थान हमें महाभारत के समय की राजनीति और षड्यंत्रों की याद दिलाता है और यह दर्शाता है कि किस तरह से पांडवों ने अपनी बुद्धिमत्ता और साहस से इस कठिन परिस्थिति का सामना किया। यदि आप प्रयागराज की यात्रा पर हैं, तो इस ऐतिहासिक स्थल का दौरा अवश्य करें।

