
प्रयागराज से लगभग 68 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मांडा का किला एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस किले का निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा गुजन देव द्वारा किया गया था, जो कन्नौज के शासकों के वंशज थे। किला लगभग तीन बीघा में फैला हुआ है और इसकी वास्तुकला मध्यकालीन शैली की है। यह किला चंद्रवंशी राजपूतों की विरासत को दर्शाता है और यहां एक सफेद झंडा लाल अर्धचंद्र के साथ फहराता है, जो राजा वी.पी. सिंह की वंशावली को रेखांकित करता है।
मांडा किला प्रयागराज से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां तक पहुंचने के लिए ट्रेन एक सुविधाजनक साधन है। प्रयागराज से मांडा रोड रेलवे स्टेशन तक 1 घंटे में पहुचा जा सकता है जहां से 10 किलोमीटर सड़क से यात्रा करते हुवे किसी साधन द्वारा यहाँ पहुंचा जा सकता है। यहाँ से सिर्फ 34 किलोमीटर दूर है विंध्याचल का मंदिर। प्रयागराज-मिर्जापुर रोड से भी किले तक पहुंचा जा सकता है।
मांडा किले का इतिहास और यहां के राजाओं की कहानियां इसे एक विशेष स्थान बनाती हैं। राजा राम प्रताप सिंह को ब्रिटिश राज द्वारा 1913 में राजा बहादुर की उपाधि दी गई थी। इस किले के अंतिम राजा बहादुर राम गोपाल सिंह थे, जिन्होंने अपने दत्तक पुत्र विश्वनाथ प्रताप सिंह को गोद लिया था, जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने। आज, किले की स्थिति कुछ जर्जर हो चुकी है, लेकिन इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इसे एक हेरिटेज होटल में बदलने की योजना है।
मांडा किला और इसके आसपास के क्षेत्र इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए एक अनूठा अनुभव प्रदान करते हैं। यहां की यात्रा आपको भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय से रूबरू कराती है और आपको उस समय की शाही भव्यता का अनुभव कराती है।

