यह भारत के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती ( प्राचीन काल में प्रवाहित, वर्तमान में लुप्त ) नदियां मिलती हैं। ऐसा माना जाता है कि गंगा और यमुना का पानी जिस जगह आपस में मिलता है उस संगम में स्नान करने से शरीर के सभी रोग दूर हो जाते हैं।
आयुर्वेद में रोगों को नष्ट करने की शक्ति एक विशेष प्रकार की औषधि में पाई जाती है जिसको कहा जाता है- अमृत। तर्क शास्त्री ऐसा मानते हैं कि हिमालय से बहते हुए गंगा और यमुना का जो पानी संगम तक पहुंचता है उसमें अलग-अलग किस्म की जड़ी बूटियों का मिश्रण होता है। यह दोनों जल जब आपस में मिलते हैं तब उन जड़ी बूटियों की शक्ति बढ़ जाती है जिससे इस जल में स्नान करना लाभकारी होता है। हालांकि इस सिद्धांत को अभी भी वैज्ञानिक तरीके से सिद्ध नहीं किया गया है।
इसी विचार को आधार मानकर इस भूमि पर हर वर्ष माघ मेला, तीन वर्षों पर कुम्भ, 6 वर्षों पर अर्ध कुम्भ और 12 वर्षों के बाद महाकुंभ का विशाल मेला आयोजित किया जाता है। जिसमें सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि कई देशों के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं और यहां के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक वातावरण का अनुभव करते हैं।
2013 में जो महाकुंभ आयोजित हुआ था ऐसा माना जाता है कि उसमें कम से कम 10 करोड़ लोगों ने भाग लिया था। इस तरह संगम की यह भूमि एक ऐसा क्षेत्र बन जाती है जहां पर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला आयोजित किया जाता है।
महाकुंभ को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार जब देवता ( अच्छाई ) और दानव ( बुराई ) के बीच युद्ध होता है तब मनुष्य के अंतर्मन में ज्ञान का अमृत पैदा होता है। यही ज्ञान उसे अध्यात्म के मार्ग पर ले जाता है। जिसके बाद व्यक्ति को न ही किसी वस्तु से मोह रहता है और न ही किसी व्यक्ति की चिंता। यही है आध्यात्मिक मोक्ष।
ऐसी ही विशेषताओं के कारण कुंभ मेले को 2017 में UNESCO ने मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल कर लिया है।
आयुर्वेद में रोगों को नष्ट करने की शक्ति एक विशेष प्रकार की औषधि में पाई जाती है जिसको कहा जाता है- अमृत। तर्क शास्त्री ऐसा मानते हैं कि हिमालय से बहते हुए गंगा और यमुना का जो पानी संगम तक पहुंचता है उसमें अलग-अलग किस्म की जड़ी बूटियों का मिश्रण होता है। यह दोनों जल जब आपस में मिलते हैं तब उन जड़ी बूटियों की शक्ति बढ़ जाती है जिससे इस जल में स्नान करना लाभकारी होता है। हालांकि इस सिद्धांत को अभी भी वैज्ञानिक तरीके से सिद्ध नहीं किया गया है।
इसी विचार को आधार मानकर इस भूमि पर हर वर्ष माघ मेला, तीन वर्षों पर कुम्भ, 6 वर्षों पर अर्ध कुम्भ और 12 वर्षों के बाद महाकुंभ का विशाल मेला आयोजित किया जाता है। जिसमें सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि कई देशों के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं और यहां के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक वातावरण का अनुभव करते हैं।
2013 में जो महाकुंभ आयोजित हुआ था ऐसा माना जाता है कि उसमें कम से कम 10 करोड़ लोगों ने भाग लिया था। इस तरह संगम की यह भूमि एक ऐसा क्षेत्र बन जाती है जहां पर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला आयोजित किया जाता है।
महाकुंभ को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार जब देवता ( अच्छाई ) और दानव ( बुराई ) के बीच युद्ध होता है तब मनुष्य के अंतर्मन में ज्ञान का अमृत पैदा होता है। यही ज्ञान उसे अध्यात्म के मार्ग पर ले जाता है। जिसके बाद व्यक्ति को न ही किसी वस्तु से मोह रहता है और न ही किसी व्यक्ति की चिंता। यही है आध्यात्मिक मोक्ष।
ऐसी ही विशेषताओं के कारण कुंभ मेले को 2017 में UNESCO ने मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल कर लिया है।






