
प्रयागराज के पातालपुरी मंदिर का इतिहास
प्रयागराज का पातालपुरी मंदिर संगम के किनारे मौजूद प्रयागराज किले के भीतर स्थित है। अपनी भारत यात्रा के दौरान चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहां का भ्रमण किया था। लेकिन उसके यहां पर आने का एक विशेष कारण था।

प्रयागराज के पातालपुरी मंदिर से जुड़ा विवाद
उस समय पातालपुरी मंदिर एक ऊंचे टीले के भीतर था। टीले के ऊपर अक्षयवट का पुराना वृक्ष था और उसके नीचे एक गहरा कुँवा जिसे सरस्वती कूप कहा जाता था। लोग मोक्ष पाने के लिए अक्षय वट पर चढ़कर कुएं में छलांग लगाकर आत्महत्या कर लेते थे।

प्रयागराज के पातालपुरी मंदिर में गुप्त दान का रहस्य
लेकिन आत्महत्या करने से पहले मोक्ष पाने के लिए एक खास तरह की प्रक्रिया का पालन करना पड़ता था। वह प्रक्रिया थी पातालपुरी मंदिर में जाकर भगवान शिव, धर्मराज और सभी देवताओं को गंगा जल अर्पित करना तथा अंत में मंदिर से बाहर निकलते समय यमराज के पास बैठे पंडे को गुप्त दान करना।

प्रयागराज का पातालपुरी मंदिर था मोक्ष का मार्ग
मान्यता यह थी कि कुएं में कूदने के बाद जब प्राण निकल जाए तो यमराज आत्मा को लेकर नर्क की आग में न जलाएं बल्कि उसे हमेशा के लिए मोक्ष प्रदान करें। बाद में अकबर ने जब इस टीले को किले के भीतर संरक्षित कर लिया तब उस कुएं को लाल पत्थरों से पटवा दिया गया।