ये एक ऐसा बरगद का पेड़ है जिसके बारे में ये मान्यता है कि यह जितनी बार सूखता है उतनी बार इसकी जड़ों से पुन: एक नया वृक्ष उग आता है। इस तरह ये माना जाता है कि इसकी उम्र हजारों वर्षों से भी अधिक है। ये इतना प्राचीन माना जाता है कि बाल्मीकि द्वारा लिखे गए रामायण में भी इसका वर्णन मिलता है जहां श्री राम गंगा पार करके संगम तक पहुंचते हैं और एक रात इस अक्षयवट के नीचे विश्राम करते हैं और अगली सुबह एक शिवलिंग की स्थापना करके चित्रकूट जाने के लिए कुछ दूर आगे से यमुना को पार करके सुजावन देव पहुचते हैं। यह वट वृक्ष अकबर के किले के भीतर है।








